दोपहर का समय था। सूर्य देवता का रथ अभी गगन में अधिक ऊपर नहीं चढ़ा था ; लेक़िन पावन धरती द्वारका नगरी के मार्ग पर एक रथ तेज़ी से आगें बढ़ता जा रहा था। रथ में उस नगरी के रचयिता द्वारकाधीश की माता देवकी सवार थीं। उनका मन विचलित था। रथ के पहिए की तरह ही विचार उनके मन में घूम रहें थें। योगेश्वर कृष्ण की माता का मन विचलित है ,यदि यह कोई जान लेता तो निश्चय ही अजरज में पड़ जाता। देवकी जो कि द्वारका नगरी की महारानी हैं ,सब उनका सम्मान करते हैं। उन्हें अब किसी प्रकार