पृष्ठभूमि में नैनीताल:

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पृष्ठभूमि में नैनीताल:1973 से 1977 का नैनीताल पृष्ठभूमि में जा चुका था। सोच ही रहा था-"जीवन हैकहीं से निकल लेगा,ठोकर लगेगी,गिरेगा फिर उठ जायेगा।उसका अन्त नहीं मिलेगागायेगा,नाचेगा सुगंध बन उड़ जायेगा।जीवन है कभी भी, किसी तरह आ जायेगागुदगुदायेगा,गरमायेगा।एक दूसरे के विरुद्ध हो सकपकायेगा,एक दूसरे के संग हो मुस्करायेगा, हँसेगा, फिर नींद के आगोश में आराम करेगा।जो गाया गया उसे दोहरायेगा,नया रच नक्षत्र सा टिमटिमायेगा।जीवन है उसे भूख लगेगी,श्रम से,परिश्रम सेआत्मा पूरी होगी।"हल्द्वानी जाने वाली बस तब भी यहीं से जाती थी, अब भी,तल्लीताल से। बस को देखकर लगता है यदि क्षण रूके होते तो मैं ढेरसारी शुभकामनाएं देते हुये स्वयं को देखता रहता।