पूस की रात

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सूत्रों के अनुसार ‘पूस की रात’ कहानी पहली बार माधुरी के मई, 1930 अंक में प्रकाशित हुई थी। कैसे तो प्रेमचंद ने अपनी इस कहानी की भूमिका बांधी है!   ‘पूस की अंधेरी रात! जब आकाश के तारे भी ठिठुरते हुए मालूम देते थे।’ ( ‘पूस की रात’ से उद्धत )   और एक निर्धन किसान,हल्कू ( प्रेमचंद यहां उस का परिचय भी उस के ‘भारी भरकम डील’ की बात करते हुए अपने उस्तादाना अंदाज़ में लिखते हैं ‘जो उस के नाम को झूठ सिद्ध करता था’) नीलगाय से अपनी फ़सल बचाने के लिए अपने घर से गाढ़े की एक