मंदी का डर और सोच की ताकत

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मंदी का डर और सोच की ताकत सड़क के किनारे एक साधारण-सा आदमी समोसे बेचा करता था। उसकी ज़िंदगी बहुत सादी थी। न वह अख़बार पढ़ता था, न रेडियो सुनता था और न ही टेलीविज़न देखता था। वजह यह थी कि वह पढ़ा-लिखा नहीं था, कान से थोड़ी कम सुनता था और आँखें भी कमजोर थीं। मगर इन सब कमियों के बावजूद उसके अंदर एक गजब की सकारात्मक सोच और मेहनत की आदत थी।वह रोज़ सुबह उठकर पूरी लगन से अपने चूल्हे पर आलू उबालता, मसाले तैयार करता और गरमा-गरम समोसे तलकर ग्राहकों को खिलाता। उसके समोसे की खुशबू दूर तक