संभोग से समाधि - 3

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--- प्रस्तावना "जिसने ऊर्जा को नकारा — वह वासनाओं का गुलाम बना।जिसने ऊर्जा को स्वीकारा — वह समाधि की राह पर चला।और जिसने ऊर्जा को रूपांतरित किया — वही योगी हुआ।"यह ग्रंथ 'संभोग' पर नहीं, बल्कि 'ऊर्जा' पर है।यह ग्रंथ भोग के विरोध में नहीं है — और न ही त्याग की वकालत करता है।यह उस तीसरे मार्ग की खोज है —जिसे तंत्र "स्वीकृति और साक्षी" का पथ कहता है।संभोग, केवल शरीर की क्रिया नहीं —वह अस्तित्व की गहराई में प्रवाहित एक शक्तिशाली ऊर्जा है।उसका मूल उद्देश्य सृष्टि है — और उसकी चरम संभावना समाधि।तंत्र कहता है:"ऊर्जा को नकारो मत।उसे