बदलती दुनिया में हम - 1

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️ रचना – बदलती दुनिया में हम मनुष्य की आर्थिक  सम्पत्ति, उसका आचरण ही होता है। यदि आचरण ही मनुष्य से प्रतिछिन्न हो जाएगा , तो उसका जीवन एक कंटक के समान होगा।  मुझे वह दिन भुला नहीं जाता जिस दिन मेरी मां कहती थी सो जा अब बहुत रात हो गई है मैं तारों का टिमटिमाना देख रहा था जो  बेहद आकर्षक लग रहा था।  शायद वह दिन कभी नहीं आएगा, लेकिन उसकी यादें सर्वत्र रहेगी। आज की दृष्टि से देखा जाये, तो वर्तमान समय बड़ा विचित्र लगता है।  अगर कोई व्यक्ति हमारे रोम रोम से पूछे की आपका जीवन