अध्याय 1 – बचपन की धूप और मिट्टीसुबह के पाँच बजे होंगे।गाँव बेलापुर की गलियों में मुर्गे की बांग सुनाई दे रही थी। धुंध के बीच से सूरज की हल्की किरणें निकल रही थीं, और मिट्टी के रास्तों पर ओस की बूंदें चमक रही थीं।चारों तरफ़ खेतों में फैली हरी-भरी फसल, जिनके ऊपर चिड़ियाँ चहचहा रही थीं।गाँव का माहौल ऐसा था, मानो किसी पुराने पोस्टकार्ड में रंग भर दिए गए हों।गाँव के किनारे एक कच्चा मकान था — दीवारें मिट्टी की, छत टीन की चादरों से बनी हुई, जिनमें बरसात में कई जगह से पानी टपकता था।यही सलीम का घर