चायवाले से नेता तक – एक प्रेरक यात्रा

भाग 1 – साधारण शुरुआतगुजरात के एक छोटे कस्बे में, रेलवे स्टेशन के किनारे, एक पुरानी लकड़ी की गुमटी थी। सुबह-सुबह भाप उड़ाती चाय की खुशबू दूर तक फैल जाती।यहीं खड़ा होता था मनोज, अपने पिता की चाय की दुकान पर। उम्र मुश्किल से 13 साल, लेकिन जिम्मेदारियों का बोझ जैसे उससे कई गुना भारी था।ग्राहक आते-जाते, मनोज चाय के साथ मुस्कान भी परोसता।पिता कहते —“बेटा, मेहनत से बड़ा कोई धन नहीं।”मनोज स्कूल भी जाता, लेकिन ज्यादातर समय दुकान पर ही गुजरता। उसकी आंखों में हमेशा एक चमक रहती, मानो वो चाय के प्याले से आगे भी कुछ देख पा