झोंपड़े के द्वार पर बाप और बेटा दोनों एक बुझे हुए अलाव के सामने चुपचाप बैठे हुए हैं और अन्दर बेटे की जवान बीवी बुधिया प्रसव-वेदना से पछाड़ खा रही थी। रह-रह कर उसके मुँह से ऐसी दिल हिला देने वाली आवाज निकलती थी कि दोनों कलेजा थाम लेते थे। जाड़ों की रात थी, प्रकृति सन्नाटे में डूबी हुई। सारा गाँव अंधकार में लय हो गया था।धीसू ने कहा, "मालूम होता है बचेगी नहीं। सारा दिन दौड़ते ही गया, जा, देख तो आ।"माधव चिढ़ कर बोला, "मरना ही है तो जल्दी मर क्यों नहीं जाती, देख कर क्या करूँ?""तू बड़ा