आखिरी चिट्ठी

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भाग-1: शुरुआतराघव, एक छोटे से कस्बे में रहने वाला एक साधारण सा डाकिया था। उम्र लगभग पचपन साल, सफ़ेद होते बाल, और चेहरे पर समय की लकीरें। वह पिछले तीस साल से लोगों के घर-घर चिट्ठियां, मनीऑर्डर और पार्सल पहुँचाता आया था।लेकिन समय बदल रहा था। मोबाइल और ईमेल के जमाने में चिट्ठियों का आना लगभग बंद हो गया था। राघव का काम अब बस बिजली के बिल और सरकारी नोटिस पहुंचाने तक सिमट गया था।फिर भी, उसके दिल में चिट्ठियों के लिए एक खास जगह थी — कागज़ पर लिखी स्याही में जो अपनापन होता है, वो किसी स्क्रीन