उजाले की ओर –संस्मरण

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आशीष भरी शक्तिपात की एक सुहानी शाम, आ.बहल जी के नाम ====================================== जैसे जैसे हम उम्र के पड़ाव पार करते चले जाते हैँ, संवेदनाओं के झुरमुट से न जाने कितनी अनजानी, अनदेखी बातें, कुछ काल्पनिक विचार मन की झिर्री से झाँकने लगते हैं बल्कि कहना बेहतर होगा कि विचार झाँककर उड़ान भरने लगते हैं| मेरे साथ तो ऐसा ही होता है और पूरी आश्वस्त हूँ कि ये मानवीय संवेदनाएं अपने मुखौटे बदलती रहती हैं| कुछ लोग ऐसे जो एक पावन दीप बनकर मन की कलुषता को समाप्त कर उजाला भर देते हैं| हम ताकते रहते हैं उन झरोखों को जिनमें