मिट्टी का दीया

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राजस्थान के एक छोटे से कस्बे में, सूरज नाम का लड़का रहता था। उसके पिता एक साधारण कुम्हार थे, जो मिट्टी के बर्तन और दीये बनाकर घर चलाते थे। घर की हालत बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन सूरज के पिता हमेशा कहते —"बेटा, गरीबी बुरी नहीं, बुरा होता है हार मान लेना।"सूरज बचपन से पढ़ाई में तेज था, लेकिन उसे लगता था कि इतनी कमाई में उसकी पढ़ाई ज्यादा दिन तक नहीं चल पाएगी। कई बार वह सोचता कि पढ़ाई छोड़कर पिता का काम संभाल ले, ताकि घर में थोड़ी मदद हो सके। लेकिन हर बार उसकी माँ उसे समझाती