सिंहासन - 3

सिंहासन – अध्याय 3: भीतर का नाग(एक यात्रा, जो मन में छुपे अंधकार को उजागर करेगी…)स्थान: नागफन सुरंगसमय: वही रात — जब द्वार बंद हो चुका था आरव आगे बढ़ रहा था अंधेरा इतना गहरा था कि लालटेन की रोशनी भी गुम सी लग रही थी।आरव के कदम पत्थर की ठंडी ज़मीन पर गूंज रहे थे, और पीछे से आती वह सरसराहट अब और नज़दीक लगने लगी थी।“कौन है वहाँ?” उसने धीमे स्वर में पूछा।कोई उत्तर नहीं।बस एक ठंडी हवा, जैसे किसी ने उसके कान के पास सांस ली हो।---भ्रम का पहला मोड़सुरंग अचानक दो हिस्सों में बंट गई।दाहिनी ओर हल्की