मैं महत्वपूर्ण नहीं हूँ: बरगद की कहानी - 2

 मैं महत्वपूर्ण नहीं हूँ: बरगद की कहएक शांत गाँव के बीच में एक प्राचीन बरगद का पेड़ खड़ा था। इसकी जड़ें धरती में गहरे बुन रही थीं, जैसे धरती की नसें हों। इसकी शाखाएँ झुकी हुई थीं, मानो हवा से कह रही हों, “मैं महत्वपूर्ण नहीं हूँ।” गाँव वाले इसकी छाँव में विश्राम करते, बच्चे इसकी डालियों पर झूलते, और पक्षी इसके घने पत्तों में घोंसले बनाते। फिर भी, बरगद चुपचाप सोचता, “मेरी कीमत क्या? मैं तो बस एक पेड़ हूँ।”यह सोच बरगद के मन में बचपन से ही जड़ें जमाए थी। जब वह एक छोटा सा पौधा था, तूफानों