मैं महत्वपूर्ण नहीं हूँ: बरगद की कहानी - 1

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.मैं महत्वपूर्ण नहीं हूँ: बरगद की कहानीगाँव के बीचों-बीच, पुराने मंदिर के पास, एक प्राचीन बरगद खड़ा था। उसकी जड़ें धरती के भीतर ऐसे फैली थीं, जैसे धरती की धमनियाँ हों, जो पूरे गाँव को चुपचाप थामे हुए थीं। शाखाएँ इतनी फैली थीं कि गर्मियों में चौराहे पर किसी को धूप छू भी नहीं पाती।गाँव वाले उसकी छाँव में बैठकर दिन भर बातें करते, बच्चे डालियों से झूलते, और पक्षी पत्तों में घोंसले बनाते। लेकिन बरगद के भीतर एक अनसुनी फुसफुसाहट हमेशा गूंजती रहती — “मैं महत्वपूर्ण नहीं हूँ।”बरगद का बचपन और वह स्क्रिप्टबरगद ने यह सोच बचपन में ही