मेरा होना ही मेरा भ्रम है ।

मैं एक अध्यापक के तौर पर अपना जीवन व्यतीत कर रहा था , मन में ये विचार थे कि मैं जितना कर सकता हूं उतना शायद ही कोई कर पाए ।उस वक्त विद्यालय को मेरी जरूरत थी , और मुझे कुछ पेसो की , मैने विद्यालय छोड़ कर दूसरे में जाने का विचार मनाया ।मैने विद्यालय संचालक को बोला मै जा रहा हूं, किसी और विद्यालय में, आप मेरी तनख्वाह बढ़ाए ।उन्होंने बहुत सुंदर वाक्य बोला जो मेरी जिंदगी बदल दी ।" किसी के ना होने से कोई कार्य नहीं रुकता अरुण  , घर तो वो भी पाल लेते है