मैं या सिर्फ मैं ...

आज भी खिड़की से आती ठंडी हवा ने चेहरा छू लिया…मैंने परदे खींच दिए,ना जाने क्यों, अब रोशनी से डर लगने लगा है।कभी सूरज देख कर खुश हो जाती थी मैं, अब लगता है,वो भी पूछ रहा है—"तू इतनी बदली क्यों है?"तेरे चेहरे से मुस्कान रूठा क्यों है ???मैं अब जवाब देना नहीं चाहती हूं..... बचपना को भूल कर खुद को सयानी कहना नहीं चाहती हूं।"तू ठीक है न?"—मैं अपने आप से पूछती हूँ।एक थकी हुई, टूटी-सी आवाज़ आती है—"ठीक…? पता नहीं। शायद हूँ भी, शायद नहीं भी।"यहां फिर से उलझ गई हूं मैं खुद के सवालों में जिसका जवाब