पार्ट 3 — "जंजीरें इश्क़ की" हवा उस रात कुछ ज़्यादा ही भारी थी। बुरी तरह चुपचाप… जैसे पूरी दुनिया सांस रोके खड़ी हो। आकाश में चाँद बादलों के पीछे छुपा था और हवाओं में मिट्टी और सड़ांध की गंध घुली हुई थी। राघव अपने कमरे में लेटा था, लेकिन नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी।दरवाज़े के पास रखी पुरानी लोहे की जंजीर फिर से ठक… ठक… ठक… की हल्की-सी आवाज़ कर रही थी।राघव ने करवट ली और सोचा —"ये आवाज़ सिर्फ हवा से आ रही है… बस हवा से…"लेकिन अगले ही पल… एक और आवाज़ आई —"राघव…"उसकी रगों में