मंजिले - भाग 40

ईमानदार ---------मंज़िले कहानी सगरहे की मेरी सब से सुंदर कला कृति......पांच बड़े माहल ऊपर के ऊपर.... मेरी सारी गर्दन देखने मे ही पीछे जा टिकी। ईमानदारी से इतना बिजनेस कैसे खड़ा करते है, लोग, सोचता हूँ मैं। ईमानदारी की तो रोटी मसा चलती है। ये कैसे सब कर लेते है।सोच ही रहा था, सौ रहे वाच मैन ने कहा ---" बाबू जी कया ऊपर से नीचे, फिर नीचे से ऊपर देख रहे हो... रोज यही कयो आते हो ----? देखने वाला पाठक था। गरीब परिवार का मातड लड़का... कया बताये --- " जो बीच बैठे है सब चोर है, या