(प्रतिध्वनि की पुकार)स्थान: काशीसमय: कुछ दिन बादडायरी के अंतिम पृष्ठ पर उभरा एक ही शब्द — “काशी” — रिया के लिए महज़ कोई स्थान नहीं था, वह किसी गहरे संकेत की तरह था। हरिद्वार की हवेली में मिली “1892” की पुरानी तस्वीर, बाबा की अधूरी बातें, और उस वृद्ध तपस्वी की रहस्यमय मुस्कान — सब कुछ जैसे इसी ओर इशारा कर रहा था।इस बार रिया ने कोई सवाल नहीं किया। उसने ट्रेन पकड़ी और बनारस की ओर निकल पड़ी — उस शहर की ओर, जो खुद एक जीवित कथा है।रास्ते भर वही डायरी उसकी गोद में खुली रही। उसकी आँखें