चाय की दुकान

छोटे से गांव “बिहारीपुर” में एक चाय की दुकान थी, जिसका नाम था "सपनों की चाय"। यह नाम थोड़ा अजीब था लेकिन हर आने-जाने वाला एक बार रुकता ज़रूर था। दुकान चलाता था — राजू, एक 22 साल का नौजवान, जिसने शहर की बड़ी-बड़ी कंपनियों का सपना देखा था, लेकिन हालात ने उसे चाय बेचने पर मजबूर कर दिया।राजू पढ़ाई में तेज़ था। इंटर तक उसने टॉप किया था, लेकिन जब पिताजी की अचानक तबीयत बिगड़ी, तो कॉलेज छोड़कर चाय की दुकान संभाल ली। मां कहती थीं, “बेटा, चाय बेचते रहना, लेकिन ईमान मत बेचना।”दुकान पर सिर्फ चाय नहीं मिलती