इतिहास के साथ ‘रचनात्मक’ होना (विकृत करना) जबरदस्ती से की गई नेहरूवादी-मार्क्सवादी विकृतियाँ पिछले उप-अध्याय/भूल में जिस चीज को उजागर किया गया है, उसे करने के बजाय संबंधित प्रतिष्ठान सिर्फ अपना सोचनेवाले बाबू-शिक्षाविदों के कब्जे में रहा और इसके साथ ही नेहरूवादियों, मार्क्सवादियों एवं समाजवादियों के भी, जिन्होंने शिक्षा का नौकरशाहीकरण कर दिया और मार्क्सवादी विश्व-दृष्टि एवं स्थापना की सुविधा के अनुकूल दिशा का अनुकरण सुनिश्चित किया गया। हमारे पास जो मौजूद हैं, वे सक्षम विद्वान् न होकर राजनीतिक पिछलग्गू हैं। उपर्युक्त की बदौलत पश्चिम द्वारा लिखित इतिहास का पक्षपाती, विकृत संस्करण अभी भी प्रयोग में है। इसे समाप्त करने के बजाय हमारे