योग और संप्रदाय धर्म

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प्रस्तावना — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓷𝓲> “योग भीतर का मौन है —और संप्रदाय बाहर की भाषा।”मनुष्य की सबसे प्राचीन खोज यही रही है:मैं कौन हूं?मैं कहाँ से आया हूं?क्या ईश्वर बाहर है — या मैं ही उसका प्रतिबिंब हूं?योग इसी मौलिक प्रश्न से जन्मा —एक खोज, एक प्यास,जिसमें शब्द समाप्त हो जाते हैंऔर मौन बोलने लगता है।लेकिन जैसे-जैसे यह मौन गहराने लगा,कुछ लोग डर गए —क्योंकि जहाँ मौन है, वहाँ कोई गुरु नहीं,वहाँ कोई धर्म नहीं,वहाँ कोई संस्था नहीं।तभी संप्रदायों ने जन्म लिया —मौन को शब्दों में बाँधने का प्रयास शुरू हुआ।अनुभव को मत में बदला गया,और योग को धर्म बना