Ch 4 : मंदिर की परछाइयाँशमशेरपुर में अगली सुबह कुछ अजीब सी थी।सूरज तो निकला, लेकिन उसकी रोशनी में वो गर्माहट नहीं थी। जैसे आसमान भी डर गया हो। गाँव पूरी तरह शांत था। न पक्षियों की आवाज़, न ही घरों के बर्तनों की खनक। हर कोई जैसे किसी अनदेखे डर में जी रहा हो।मीरा ने पूरी रात एक पल भी नहीं सोया। उसकी बहन निष्ठा का चेहरा उसकी आँखों के सामने बार-बार आ रहा था — लेकिन अब वो चेहरा वैसा नहीं था जैसा यादों में था। वो चेहरा अब डरावना और सूना था… जैसे उसमें कोई आत्मा नहीं