Ch 3 : जंगल की पहली पुकाररात पूरी तरह से शमशेरपुर पर छा चुकी थी। अंधेरा बस बाहर नहीं था, बल्कि हर कोने में समा चुका था। चारों ओर गहरी, अजीब सी शांति थी। पेड़ भी जैसे डर के मारे चुपचाप खड़े थे, उनके पत्ते तक नहीं हिल रहे थे।मीरा, रवि, राघव, यामिनी और तेजा जंगल के किनारे खड़े थे। उनके चेहरे गंभीर थे। एक टॉर्च और एक पुरानी लालटेन उनके हाथों में थीं, जिनकी हल्की रोशनी ही उनका सहारा थी।"क्या हम सच में अंदर जा रहे हैं?" यामिनी ने डरते हुए पूछा।"हाँ," मीरा ने धीमे लेकिन मजबूत आवाज़ में