बरसात के बाद की धूप

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अहमदाबाद की बारिश जैसे शहर को नहीं, रागिनी के भीतर के सूनेपन को भिगो रही थी। खिड़की के बाहर रुक-रुक कर गिरती बूँदें, बहती सड़कें और बिजली के टूटे हुए प्रतिबिंब—सब कुछ किसी धीमे और उदास गीत जैसा लग रहा था। खामोशी से बैठे हुए रागिनी को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे बाहर का मौसम उसके मन का आईना बन गया हो। उसकी शादी को बीस साल हो चुके थे। पति मधुर एक सरकारी अधिकारी थे—कर्मठ, अनुशासित और ज़िम्मेदार। ज़िंदगी की तमाम ज़िम्मेदारियों को निभाते-निभाते कब वे एक मशीन बन गए, यह शायद उन्हें भी नहीं पता चला। उनके