हममें से अधिकतर लोग ज़िंदगी को एक मंज़िल की तरह देखते हैं — ऐसा मुकाम जहाँ पहुँचकर सब कुछ परफेक्ट हो जाएगा। हमें लगता है कि जब एक अच्छी नौकरी मिल जाएगी, घर बन जाएगा, बैंक बैलेंस बढ़ जाएगा, रिश्ते सुलझ जाएँगे — तब हम चैन की साँस लेंगे, तब असली ज़िंदगी शुरू होगी। लेकिन क्या वाकई ज़िंदगी की असली शुरुआत सिर्फ मंज़िल मिलने के बाद होती है?असल में, ज़िंदगी कोई ठहराव नहीं, बल्कि एक बहता हुआ सफर है। यह हर रोज़ बदलता है, हर दिन कुछ नया सिखाता है। हम कभी खुश होते हैं, कभी परेशान, कभी थक जाते