सिंहासन – अध्याय 2: नागों का द्वार(एक शाप, एक खोज, और एक सिंहासन जिसे छूना मौत को न्योता देना है…)स्थान: देवगढ़ किला – गुप्त सुरंग के अंतिम द्वार के पारसमय: रात – आधी रात के बाद का पहरदरवाज़ा खुला तो एक गहरी सर्द हवा का झोंका आरव के चेहरे से टकराया।उसके कानों में गूंजती आवाज़ अब भी हल्के स्वर में दोहराई जा रही थी –“स्वागत है… जो लौटकर नहीं आते।”आरव ने लालटेन को ऊँचा किया।सामने एक विशाल गुफा थी – दीवारों पर उभरे नागों की मूर्तियाँ, जिनकी आंखों में जड़े पत्थर अंधेरे में चमक रहे थे।हर कदम के साथ, आरव