आधा सच

लखनऊ का पुराना शहरसंकरी गलियों से गुजरते हुए जब बारिश थोड़ी तेज़ हुई, तो राघव ने अपने बैग का ज़िप बंद किया और सीधे अपने रेगुलर शॉर्टकट से निकल गया।वही शॉर्टकट, जो एक पुरानी, धीरे-धीरे भुला दी गई बाज़ार से होकर जाता था।बाज़ार नवाबी गेट के पास।सदियों पुरानी इमारतें, उखड़ती हुई पुताई, पुराने लकड़ी के छज्जे।वहीं एक स्टेशनरी की दुकान का बोर्ड धुंधला सा दिखा, जिसमें कोई नाम नहीं था।बस एक पुराना, फीका लाल परदा… और अंदर से आती हल्के नारंगी बल्ब की रोशनी।दरवाज़ा धक्का देते ही छम-छम की आवाज़ आई।अंदर एक बूढ़ा आदमी था — सफ़ेद दाढ़ी, सफ़ेद टोपी,