ठंडी रात थी। कोलकाता की सड़कों पर धुंध लिपटी हुई थी, जैसे कोई अपने दर्द को चुपचाप छुपा रहा हो। सायरा खान बस अड्डे के कोने में एक बेंच पर बैठी थी, एक छोटा बैग गोद में रखे, आंखों में डर और दिल में अनजाना सा बोझ लिए।उसके सामने चमचमाती कारें थीं, पर उसके पैरों में बस चप्पलें और भविष्य अनजान था।"ये शहर मेरी मंज़िल नहीं, मेरी मज़बूरी है," उसने खुद से कहा।अचानक, तेज़ ब्रेक की आवाज़ हुई। एक काली SUV उसके सामने आकर रुकी। दरवाज़ा खुला और एक लंबा, सख्त चेहरा बाहर निकला।"तुम सायरा हो?" आवाज़ सख्त थी, लेकिन