इश्क़ और वहम-एक हवेली की दास्तान - 2

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निर्जर दस साल बाद धौलागढ़ गांव लौटा है, अपनी अधूरी मोहब्बत चारुलता की तलाश में। वृंदावन हवेली, जहां कभी उसका बचपन और उसका प्यार दोनों जिए थे, अब एक डरावना खंडहर बन चुकी है। हवेली में दाखिल होते ही उसे बांसुरी की वही पुरानी धुन सुनाई देती है, और ऊपर के कमरे में चारुलता की नीली चुनरी, उसकी डायरी... और अचानक दीवार से झलकती रहस्यमयी रोशनी। आख़िर में, जैसे ही वह दीवार को छूता है—एक झटका लगता है और वह आम के पेड़ के नीचे पहुंचता है, जहाँ कोई बैठा है... चारुलता। लेकिन वो अब पहले जैसी नहीं रही।  “तू