बारिश धीमी-धीमी रफ्तार से गिर रही थी। कार की खिड़कियों पर बूंदें पड़कर फिसलती जा रही थीं, जैसे कोई पुरानी याद बार-बार ज़हन में आकर फिर दूर चली जाती हो। निर्जर पहाड़ी मोड़ों पर अपनी गाड़ी संभालते हुए आगे बढ़ रहा था। दूर सामने धुंध के बीच धौलागढ़ गांव की परछाईं दिखने लगी थी। वो गांव जिसे छोड़े दस साल हो चुके थे। और उसके साथ छूट गई थी एक हवेली... और एक लड़की... चारुलता। गाड़ी की हेडलाइट्स की रोशनी में दिखाई देने वाले पेड़ भी अब बूढ़े लगने लगे थे। खेतों की मिट्टी में अब वो गंध नहीं थी