(1)कमरे में सब कुछ कितना बेतरतीब और बिखरा हुआ सा पड़ा है। ऐसा लगता है, जैसे कोई बहुत दिनों तक इस कमरे को देखने नहीं आया। पहले सोचा कि इसे एक तरतीब में सजा दूँ, मैंने हाथ बढ़ाया ही था की अचानक हाथ वहीँ थम गए याद आया की यह बिखराव, अपने भीतर कितनी सारी यादों का जमावड़ा लिए हुए है। इसलिए मैंने कुछ भी तरतीब में सजाने की कोशिश नहीं की और सीधे खिड़की के पास जाकर बैठ गया। बाहर बहुत तेज़ बारिश हो रही थी। मैं भीगने के लिए खिड़की से बाहर हाथ बढ़ाने ही वाला था कि