कमरे की पुरानी पेंडुलम घड़ियाँ अब भी एक साथ टन-टन बज रही थीं, मानो कोई अदृश्य शक्ति हर धड़कते पल की गिनती कर रही हो। बंद दरवाज़े के पीछे आर्यन, तारा, रिया, देव, कबीर और निशी एक दूसरे को ऐसे देख रहे थे जैसे कोई दूसरा रास्ता न बचा हो।“हमें यहाँ से निकलना ही होगा,” आर्यन ने कहा, लेकिन उसकी आवाज़ अब खुद में भरोसे से खाली थी।“निकले कहाँ से?” कबीर चिढ़ते हुए बोला, “दरवाज़ा खुद ब खुद बंद हो गया है, खिड़की नहीं है, और छत पर चढ़ने की मेरी कोई इच्छा नहीं है… भूतों की छत से तो