दरवाज़ा ज़ोर से बंद हुआ, और एक तेज़ चीख हवेली की दीवारों से टकराकर गूंज उठी। लालटेन की लौ बुझ चुकी थी, और कमरे में अब सिर्फ़ स्याह अंधेरा था।रिया दीवार के पास सिमटी खड़ी थी, उसकी साँसें तेज़ हो चुकी थीं। "किसने चीखा?" उसकी आवाज़ काँप रही थी।"मैं नहीं था," कबीर की घबराई हुई आवाज़ आई। "किसी और की थी...""दरवाज़ा खोलो!" निशी ने घबराते हुए कहा। वो तेजी से दरवाज़ा खींचने लगी, लेकिन वो जैसे किसी अदृश्य ताक़त से जड़ा हुआ था — टस से मस नहीं हो रहा था।आर्यन ने ज़मीन से गिरी हुई लालटेन उठाई और उसकी