भूल-88 तो सांप्रदायिक आरक्षण होता अगर स्वतंत्रता के बाद कुछ प्रबुद्ध और वरिष्ठ नेताओं ने हस्तक्षेप न किया होता तो नेहरू ने मुसलमानों के लिए आरक्षण की एक और बड़ी भूल कर दी होती, जिसके परिणामस्वरूप भारत ‘धर्मनिरपेक्षता’ के चोगे में, सांप्रदायिक राजनीति के चंगुल में और गहराई से फँस जाता, जैसाकि एन.वी. गाडगिल की आत्मकथा ‘गवर्नमेंट फ्रॉम इनसाइड’ के उद्धरणों से पूरी तरह स्पष्ट हो जाएगा— “नेहरू के स्वाभिमान ने छोटी समस्याओं को भी विकट बना दिया और उन्हें चिंता का कारण बन जाने दिया, विशेषकर देश की रक्षा के मामले में। लियाकत अली (पाकिस्तान के प्रधानमंत्री) मार्च 1950 में दिल्ली आए।