फूल या शूल ---अलका सोईं =================== महाकवि नीरज जी के कहा था, शब्द तो शोर है, तमाशा है, भाव के सिंधु में बताशा है, मर्म की बात मुख से न कहो, मौन ही भावना की भाषा है ।मौन जीवन को नम एहसास से भरता है । न जाने मौन में कितना कुछ मुखरित होता रहता हैलेकिन बात को सम्मुख रखने के लिए या तो भाव-भंगिमा की आवश्यकता होती है अथवा शब्दों की!मन को सहज रखने के लिए स्वयं को खाली करना भी उतना ही आवश्यक है जितना उसका भरना !अब ये दोनों विरोधाभास ? मन में प्रश्न अवश्य उठता है लेकिन