23 साल बाद खुद को पंख लगा समय तेज रफ्तार से बीत गया। पहले एक एक कर दिन बीते, फिर एक एक कर महीने और फिर यूं ही एक एक कर बीते साल। और यूं ही देखते देखते एक के बाद एक 23 साल बीत गए। इन बीते 23 सालो में मेरे पिता यानी की कल्पेश सिंह भदौरिया, आप तो जानते ही उनको!!! अरे वहीं जिनकी दुकान थी पहले लहगों और साड़ियों की। हांं हां वहीं वहीं। पता है अब वहीं दुकान शोरुम बन गया है। और वो भी ऐसा वैसा शोरुम नहीं दो मंजिला और एकदम फैमस है, नए डिजाईन की