साइकल चला रही प्रमिला और उस की भांजी हमें पांच बजे दिखाई दीं। दुकान छोड़ कर बाबूजी और मैं अपनी डयोढ़ी में आन खड़े हुए। उन्हें मकान का रास्ता दिखाने। जो ड्योढ़ी के छोर पर खड़ी सीढ़ियों पर स्थित था। “इतनी देर लगा दी?” बाबूजी अपना रोष अपनी ज़ुबान पर ले आए। जलबाला को उस की टहलिन के हाथ सौंपने की उन्हें जल्दी थी।