संतान प्राप्ति की कहानी

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कहानी का शीर्षक: "आशीर्वाद का मूल्य"लेखक: विजय शर्मा एरीछोटे से कस्बे रतनपुर में मजदूरी कर अपना जीवन यापन करने वाला एक जोड़ा रहता था—रामू और सीता। रामू ईंट भट्टे पर काम करता था और सीता कभी घरों में झाड़ू-पोंछा करती, कभी सिलाई-कढ़ाई से थोड़ा बहुत कमा लेती।उनकी शादी को अब पंद्रह साल हो चुके थे, परंतु उनकी झोली में संतान का सुख नहीं था। गांव के बाबाओं, शहर के डॉक्टरों, दवाइयों और पूजा-पाठ—सब कुछ आजमा चुके थे। पर कहीं भी कोई आस नहीं दिखी।हर रात, रामू अपने सीने से सीता को लगाकर कहता—“सीते, भगवान ने अगर हमें अब तक कुछ