एपिसोड 5: “तेरे जज़्बातों की गिरफ़्त में…”“कभी-कभी कोई छू भी न पाए… फिर भी उसकी सोच रूह में उतर जाती है।”रात के धागे अब भी उस कमरे में उलझे हुए थे जहाँ दुआ ने पहली बार ख़ुद को उसके सीने पर चैन से सोते हुए पाया था। लेकिन चैन कितना था और छल कितना — इसका हिसाब सिर्फ़ उसकी धड़कनों को था। सुबह की धूप कमरे में उतरी, लेकिन दुआ की आँखें अब भी बंद थीं… जैसे वो उस एहसास को थोड़ा और महसूस करना चाहती थी। तकिये पर पड़े वर्दान की साँसों के निशान अब ग़ायब थे, लेकिन उसकी