मंजिले - भाग 37

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एक सत्य ----- सच मे कही  न कही घटित होती है, जिंदगी की जमात की वो कहानी ---- जो तुम कहना चाहते थे कह चुके थे।मुड़ कर वो कभी वापिस नहीं आते, चाहे कुछ भी हो। मुस्काना एक अहम भी हो सकता है.... घूलोगे, बहुत घू -लोगे तब तैयार मिलेगा पापा का वो आशेयाना। कितना टूट सकते हो, टूट जाओ, किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।मेहरबानिया अक्सर तेरी याद करते है। जो तुम हिसाब किताब मे नहीं जोड़ते थे। देखा है एक ऐसा बंदा जो मेरे अंदर ही था, मै बाहर ढूढ़ता रहता था।                                                   लिख दिया तो सब्र आया। कि जिंदगी