ईर्ष्या की आग समया संकट सरोवर के जल में तैरते असंख्य दीपों के सामूहिक झिलमिल प्रकाश से आसपास का वातावरण आलोकित हो रहा था और उस प्रकाश में चित्तौड़ की रमणियाँ बड़ा ही लुभावना नृत्य कर रही थीं। वाद्ययंत्रों से निकलते सुमधुर स्वर उस आनंदोत्सव को और भी मोहक बना रहे थे। महाराणा रायमल अपनी सभी रानियों और परिजनों सहित इस उत्सव का आनंद ले रहे थे। मेवाड़ में विजयोत्सव पर दीपदान की परंपरा बहुत पुरानी रही है। इस अवसर पर प्रजा को भोजन और दान दिया जाता था। प्रजाजनों के लिए ऐसे अवसर धनवर्षा योग जैसे होते थे। युवराज पृथ्वीराज अपने