भाग-1: बारिश की पहली बूँद और एक अधूरा नाम रचयिता: बाबुल हक़ अंसारीउस रोज़ बारिश कुछ अलग थी… ना ज़ोर से बरसी, ना आहिस्ता गिरी — बस जैसे किसी की यादों को छूने आई हो।आर्यन अपने कमरे की खिड़की से बाहर टकटकी लगाए बैठा था। सामने मैदान में कुछ बच्चे भीग रहे थे, कुछ पंछी फड़फड़ा कर छत की ओट में चले गए थे, और बारिश की हर बूँद मानो किसी भूले हुए नाम की पुकार थी।उसका मन अचानक फिर से वहीं अटक गया — एक आवाज़… एक चेहरा… और वो अधूरा नाम — **"रिया..."**वो नाम अब सिर्फ़ एक स्मृति था,