"आत्मनिर्भर"यह शब्द सुना तो बहुत था, बचपन में इस पर निबंध भी बहुत लिखे थे पर मेरे लिए यह शब्द तब तक अस्तित्व में नहीं था जब तक की मुझे मेरी सहेली ने इसका असल अर्थ समझाया नहीं था।मेरे पिताजी श्रीमान कल्पेश सिंह भदौरिया एक व्यापारी है, जिनकी खुद की एक बहुत बड़ी सी साड़ियों और लहंगों की दुकान है कानपुर में।समाज में बड़ा ही नाम और सम्मान कमाया है उन्होनें। मेरी माताजी श्रीमती कल्पना कल्पेश सिंह भदौरिया एक गृहणी है। और मैं हूं इन दोनों की एकमात्र संतान, इनकी एकलौती बेटी त्रिशा और यह है मेरी कहानी। वैसे तो मैं