लाल बैग - 4

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Chapter 4: सुबह का सन्नाटासुबह हो चुकी थी।दरवाज़े की घंटी लगातार तेज़ी से बज रही थी, मगर घर के अंदर सभी गहरी नींद में सो रहे थे।कुछ ही देर में रोज़ नींद से उठी और बेमन से दरवाज़ा खोलने चली गई।बाहर वही बूढ़ा चौकीदार खड़ा था, हाथ में नाश्ते की टोकरी लिए।"इतनी सुबह-सुबह?" रोज़ ने आंखें मसलते हुए पूछा।बूढ़ा मुस्कराया,"मैडम, सुबह के 11 बज गए हैं। मैं पहले भी आया था, लेकिन कोई नहीं उठा… तो वापस जाकर नाश्ता गर्म किया और फिर से ले आया। ये लीजिए, अब चलता हूँ।"रोज़ हैरान रह गई,"इतनी देर तक हम सब सोते