"राघव जी..." झलक मासूमियत से बोली। राघव मुस्करा दिया।झलक ने वेज पुलाव बनाया और टेबल पर रख दिया।"आईए खाना खा लीजिए।"राघव और झलक दोनों खाने लगे।झलक सिर झुकाए खा रही थी।राघव बोला, "तुम यहाँ रह सकती हो।"झलक बोली, "हम आपको और परेशान नहीं करना चाहते।"राघव सख्ती से बोला, "तुम्हारे पास और कोई जगह नहीं है। मैं कोई एहसान नहीं कर रहा। बदले में बस घर का काम, खाना बनाना और ध्यान रखना होगा।"झलक बोली, "ओके।""हम कहाँ सो सकते हैं?""कमरे में सो सकती हो। मुझे काम करना है।"अगली सुबहअभिमान सुबह 6 बजे उठ गया और रेस्टोरेंट निकल गया।मन में सोच रहा