९.पायल को अब सब कुछ बहुत साफ़-साफ़ समझ आ गया था। जैसे ही मन की उलझनें सुलझीं, उसकी आंखों में एक अलग सी चमक उभर आई थी।वह हल्के से सिर को खिड़की के कांच से टिकाकर बाहर देखने लगी। सड़क किनारे भागती ज़िंदगी के छोटे-छोटे टुकड़े उसकी आंखों में उतर रहे थे। कहीं कोई दुकानदार अख़बार समेट रहा था, कहीं स्कूली बच्चे टिफ़िन लेकर बस का इंतज़ार कर रहे थे, और कहीं कोई बुज़ुर्ग छड़ी के सहारे धीरे-धीरे चल रहा था।मन अब भी