पाँच सौ का रिश्ता

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एक गर्म दोपहर थी। आसमान पर सूरज का राज था और ज़मीन पर पसीने की नदियाँ बह रही थीं। मैं अपने रोज़ के काम-काज से निकलकर एक जरूरी मुलाकात के लिए शहर के दूसरे छोर पर जा रहा था। वैसे तो मैं अक्सर अपनी गाड़ी से जाता हूँ, पर उस दिन कुछ तकनीकी खराबी के कारण मुझे ऑटो से जाना पड़ा।मैंने सड़क किनारे खड़े एक ऑटो वाले से पूछा, “भाई, फलां जगह चलोगे?”उसने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया, “हाँ साहब, बैठिए।”“कितने पैसे लगेंगे?” मैंने आगे पूछा।“साहब, ₹100 दे देना, सीधा छोड़ दूँगा।”मुझे किराया वाजिब लगा। मैंने कहा, “ठीक है, चलो।”ऑटो में