वाजिद हुसैन सिद्दीक़ी की कहानीएक हफ्ते से ऐसी मूसलाधार बारिश, जैसे किसी ने आसमान पर सेंध लगा दी होए, पर अब लगा की ज़रा उसका आक्रोश कम हुआ तो कुछ बूंंदे ही गिर रही थीं। धुले कपड़े सूखे नहीं। फर्श अभी गीला-गीला। हर जगह कुकुरमुत्ते उग आए थे। सुधा ने खिड़की से बाहर झांका और झुंझला कर बुदबुदाई, "क्या बला है ये बारिश? बादल गुब्बरों की तरह फट रहे हैं।"मैं तो पक्के ईटों वाले घर में रहते- रहते इतनी ऊब गई तो झुग्गियों में बसे लोग इस त्रासदी को कैसे झेल रहे होंगे। अपने घर से बोरी ओढ़कर आई महरी